निःस्वार्थ प्रेम
कई दिनों से छत के कोने पर
कबूतर का एक जोड़ा मंडरा रहा था
बार बार मैं उड़ा देती
फिर वो छत के कोने पर आ बैठ जाता
किसी ने बताया ये अशुभ है
किसी अनहोनी की आशंका से
मन बार बार परेशां हो जाता था
जब ध्यान से देखा तो पाया
कबूतरी गर्भवती सी दिखती थी
मन अपराधबोध से भर आया
नए मेहमान की तैयारी में वे दोनों
तिनके तिनके जोड़ घोंसला बना डाले
चिलचिलाती धूप में उसे वहाँ बैठे पाया
वो प्रसव पीड़ा से आहत थी तब भी
पास उसके कबूतर को बैठा पाया
काश उनकी भाषा मैं जान पाती
आँखों के प्रेम को पढ़ पाती
माँ होने के नाते ये जानती हूं
प्रसव पीड़ा को पहचानती हूँ
पंछी होकर भी उसने मुझको
संकेत दिया निःस्वार्थ प्रेम की
कबूतर साथ रहा हरदम
जबतक अंडों से बच्चे आये
साथ दोनों रहते हर पल
आपस में कुछ बातें करते
मैं छिप छिप कर देखा करती
उन छोटे छोटे बच्चों को
संकल्प लिया है अब तो मन में
गलती जो हुई है मुझ से इसबार
अब कभी नहीं दुहराउंगी
बच्चों का जन्म कभी अशुभ
हो ही नही सकता
ये बात समझ अब आयी है
निःस्वार्थ प्रेम की परिभाषा को
फिर से उसने याद कराया है
संचार प्रेम का कर वापस
एक दिन उड़ जायेगा ये जोड़ा भी
माँ का दिल प्यार का सागर है
सह जाती है सारे गम को
छाह पंखों का देकर हरपल
खुशियाँ देती है बच्चों को
Shashank मणि Yadava 'सनम'
24-Aug-2022 08:17 AM
वाह लाजवाब लाजवाब बहुत ही खूबसूरती और भावनात्मक तरीके से आपने भाव व्यक्त किया है और जो संदेश आपने दिया है वो तो लाजवाब है
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kapil sharma
06-Jan-2021 06:09 PM
❣
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Archana Tiwary
08-Jan-2021 08:04 PM
धन्यवाद्
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उदय बीर सिंह
06-Jan-2021 04:44 PM
बहुत सुन्दर रचना
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Archana Tiwary
08-Jan-2021 08:04 PM
धन्यवाद्
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